अब नही सहेंगे

Saturday 29 November, 2008 | comments (2)



हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए


इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए!


सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही


मेरी कोशिश है की ये सूरत बदलनी चाहिए !


( विरोध नही अब विद्रोह होगा , शोक नही संघार होगा!)



Sunday 23 November, 2008 | comments (1)

जब अंधेरें में
उन राहों से गुजरता हूँ मैं
बिना देखे ही जन जाता हूँ
उन ढोकरो और गड्डों के बारे में
जिनमे उलझ कर गिरा था मैं
चोटें भी खाई थी मैंने
उस कुत्ते को भी पहचानता हूँ मैं
जिसने दौड़ाया था काटने को
वह साड़ भी याद है
जिसने अपनी सिंघ पर उठा कर फेकां मुझे
लेकिन फिर भी
जाता हूँ
उसी रास्ते हर रोज
कि
शायद तुम ...!
प्रशांत

Thursday 20 November, 2008 | comments (2)

इस विश्वाश में
कि मेरा मौन ही मुखरित होगा
तुम्हारे सामने
मै चुप रहा
अंत तक
और तुम
ठुढ़ते रहे मुझे
शब्दों में !
 
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