कौन कहता है
जो दिखता है वो है नहीं
क्या यह सच है ?
क्या अन्तर है उसके कहने में
और
मेरे समझने में।
सच में
मैं परिपूर्ण हूं?
भावनाओं की क्रूरता से
किसी की करुणा से
किसी की शिक्षा से
किसी की सलाह से
या स्वयं के पागलपन से
या फ़िर मै अछुता हूं
उसकी अनुभूति से
स्पर्श से
या स्वयं से ।
जो दिखता है वो है नहीं
क्या यह सच है ?
क्या अन्तर है उसके कहने में
और
मेरे समझने में।
सच में
मैं परिपूर्ण हूं?
भावनाओं की क्रूरता से
किसी की करुणा से
किसी की शिक्षा से
किसी की सलाह से
या स्वयं के पागलपन से
या फ़िर मै अछुता हूं
उसकी अनुभूति से
स्पर्श से
या स्वयं से ।
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कविता तो ठीक है ,
थोड़ी कशिश की जरूरत और है ।
आभार ।
विरोधाभास के अन्तर्द्वन्द से बाहर आईये ....!
और बेहतर संभावना दिख रही है ।
आभार...!