एक अपुर्ण प्रेम पत्र

Friday 19 November, 2010 | comments (2)

अनुभूति
गुजरे दिनो की
तब मै इतना बेबस न था
क्योंकि इतना बडा न था
ये बडा होना बेबसी का कहर बरपाता चला जायेगा
और मिलने पर कभी सडक के आर पार
खिलखिलाकर मुस्कुरा देगें


होने पर सामना
उमड़ती भावनाओं को
अनुपस्थिती के जज्बातों को
आंखो की नमी से धुमिल कर देंगें।
 
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