पन्चइतिया कुआं

Saturday, 16 July 2011 | comments (2)

हमे सफ़ल बनाना है सर्व शिक्षा अभियान । जिसमे कहा गया है सब पढ़े सब बढ़े।आज डिप्टी साहब का आदेश आया है हमारे बडका मास्टर साहब को। हमे भोजन भी तो मिलेगा । आज तहरी बनती है हमारे विद्यालय मे क्योंकि आज शुक्रवार है । तहरी जिसमे पडी होगी सोयबीन जैसे मिठाई की सुन्दरता बनाने के लिये दुकानदार उपर लगाता है चेरी के दाने "ललका"।दस किलो चावल में एक किलो दाल पडती है ।प्रोटीन युक्त भोजन का मामला है। हमारी पौष्टिकता का पुरा ध्यान रखते है हमरे प्रधान जी ।अरे अब तो और स्वादिष्ट खाना मिलेगा क्योकि अब कन्वर्जन कास्ट २.६९ पैसे से २.८९ पैसे हो गयी है। इसीलिये तो प्रधान जी भोजन की गुणवत्ता रोज देखते है । सब्जी में अधिक तेल पड़ जाने पर रसोइये को गरीयाते भी है। खाना बनाने वाले गैस का भरपूर उपयोग होता है प्रधान जी की चाय में होता है। ई बात हमरे चाचा से बतिया रहे थे बिस्कुट चाचा।


ये तो हमारे प्रधान जी है । हमारे मास्टर साहब भी हमारी शिक्षा का पुरा ध्यान देते है । लेकिन करे भी क्या वो भी तो मिड डे मिल का हिसाब और छात्रवृति का हिसाब बनाते ही रहते है तब तक गाव के बिस्कुट चाचा (अरे वही जो हमरे चाचा से बतिया रहे है) आ जाते है और उनको समझाते समझाते छुट्टी हो जाती है। कभी कभी आते है तो नन्ह्कूआ और बिट्टु का मार देखते है और कहते है तुन्हन कभो ना पड़बा सो ...........।बिट्टु और उसका छोटका मे सात साल की लहुराइ जेठाइ है लेकिन दोनो एक कक्षा मे बैठते दोनो दो का पहाड़ा याद करते है। का करे बेचारे कमरे का पैसा मास्साब और परधान जी खाय गये बात भी एसी ही थी परधान जी के लड़की की शादी थी सो पैसे की जरूरत थी अब गांव वाले भी क्या बोले गांव के इज्जत की बात थी। एक बात और बताये हमरे दुसरे मास्साब है न उ हमेशा एगो लड़्की से बतियाते रहते है।कभ्भो कभ्भो तो फोनवे पे चुम्मा भी देते है हमको और अशोकवा को बहुते मजा आता है।उनके फोनवा मे न गाना भी बजता है । नयी हीरो वाली मोटर साइकिल से आते है फिर अन्ग्रेजी का ए बी सी कहते है फ़िर फोनवे पे बतियाते बतियाते चले जाते है।

हम और हमरी गोल के लइका बस यही देखते है की खैका बना बस खाओ और स्कूल के पिछवाडे़ वाले बगैचा मे गुल्ली डन्डा खेले कल का सुधीरवा खुब दौरवले रहल आज ओक दौरावल जाइ। हम लोग भी यही देखते है की कब छोटका मास्साब जाये और हम फ़ीरी ।एक बजे तो छुट्टी हो जायेगी । बस बस्ता लिये और घर ।...........

एक अपुर्ण प्रेम पत्र

Friday, 19 November 2010 | comments (2)

अनुभूति
गुजरे दिनो की
तब मै इतना बेबस न था
क्योंकि इतना बडा न था
ये बडा होना बेबसी का कहर बरपाता चला जायेगा
और मिलने पर कभी सडक के आर पार
खिलखिलाकर मुस्कुरा देगें


होने पर सामना
उमड़ती भावनाओं को
अनुपस्थिती के जज्बातों को
आंखो की नमी से धुमिल कर देंगें।

होली-गीत - १

Saturday, 27 February 2010 | comments

उसका आना

Friday, 19 February 2010 | comments (2)


वो आयी

इस तरह

जैसे पीली शाम हो

थकी हुई सहमी हुई

वो आयी तो जरुर

लेकिन जाने के लिये

आज फ़िर किसी ने

तोड़ा है उसके सम्मान को

एक कली की तरह

वह टूट गयी फ़िर एक बार

मैं कुछ न कर सका

और वह चली गयी

जैसे पीली शाम हो

पर उम्मीद है मुझे

वो आयेगी फ़िर से

सुबह बन के

छा जायेगी पूरे क्षितिज पर

रोशनी होगी हर तरफ़

वो आयेगी जरुर आयेगी………!

तुम्हारा प्रेम

Sunday, 14 February 2010 | comments (7)

तुम्हारा प्रेम मेरी ‘शक्ति,
तुम्हारी कमी मेरी ‘कमजोरी,

इसलिये
अप्रभावित रहना चाहता हू़ं
इस क्रूर समाज में
इसकी निर्मम मर्यादाओं से
और
प्राप्त करना चाहता हूं
वो शक्ति
वो दिव्यता
जब बन्द कर अपनी आखें
मुक्त कर सकूं
अपनी आत्मा को
पल भर में
इस शरीर से
समाज की जंजीरो से और फ़िर
विचर सकूं
तेरे प्रेम के साथ
उसके मीठे एहसास के साथ
पूरे ब्रह्माडं में।

कौन कहता है

Thursday, 11 February 2010 | comments (2)

कौन कहता है
जो दिखता है वो है नहीं

क्या यह सच है ?
क्या अन्तर है उसके कहने में
और
मेरे समझने में।

सच में
मैं परिपूर्ण हूं?
भावनाओं की क्रूरता से
किसी की करुणा से
किसी की शिक्षा से
किसी की सलाह से
या स्वयं के पागलपन से
या फ़िर मै अछुता हूं
उसकी अनुभूति से
स्पर्श से
या स्वयं से ।

ऐसी थी मेरी पहली रोटी

Monday, 23 November 2009 | comments

दिल से चाहा मैंने उसे
सोचा था उसके बारे में
पहले तो मैं डर गया
पर सोचा आज तो करना है
फिर शुरु हो गया द्वंद्व
उसके और मेरे बीच
बहुत ही प्रयासों से
आखिर वो मिल ही गयी
ये मेरे सपने के सच होने जैसा था
खुशी मिली असीम मुझे
उसके स्वाद की अनुभूति ने
कर दिया मुझे आत्मविभोर
वो कोई और नहीं थी
वो थी मेरी पहली रोटी
लेकिन वो कोई साधारण रोटी नहीं
रोटी थी मेरे आत्मविश्वास की
जिसे मैंने अपने धैर्य की अग्नि में
तपाकर तैयार किया ....
ऐसी थी मेरी पहली रोटी ।
 
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