उसका आना
Friday, 19 February 2010 | comments (2)

वो आयी
इस तरह
जैसे पीली शाम हो
थकी हुई सहमी हुई
वो आयी तो जरुर
लेकिन जाने के लिये
आज फ़िर किसी ने
तोड़ा है उसके सम्मान को
एक कली की तरह
वह टूट गयी फ़िर एक बार
मैं कुछ न कर सका
और वह चली गयी
जैसे पीली शाम हो
पर उम्मीद है मुझे
वो आयेगी फ़िर से
सुबह बन के
छा जायेगी पूरे क्षितिज पर
रोशनी होगी हर तरफ़
वो आयेगी जरुर आयेगी………!
तुम्हारा प्रेम
Sunday, 14 February 2010 | comments (7)
तुम्हारा प्रेम मेरी ‘शक्ति,
तुम्हारी कमी मेरी ‘कमजोरी,
इसलिये
अप्रभावित रहना चाहता हू़ं
इस क्रूर समाज में
इसकी निर्मम मर्यादाओं से
और
प्राप्त करना चाहता हूं
वो शक्ति
वो दिव्यता
जब बन्द कर अपनी आखें
मुक्त कर सकूं
अपनी आत्मा को
पल भर में
इस शरीर से
समाज की जंजीरो से और फ़िर
विचर सकूं
तेरे प्रेम के साथ
उसके मीठे एहसास के साथ
पूरे ब्रह्माडं में।
तुम्हारी कमी मेरी ‘कमजोरी,
इसलिये
अप्रभावित रहना चाहता हू़ं
इस क्रूर समाज में
इसकी निर्मम मर्यादाओं से
और
प्राप्त करना चाहता हूं
वो शक्ति
वो दिव्यता
जब बन्द कर अपनी आखें
मुक्त कर सकूं
अपनी आत्मा को
पल भर में
इस शरीर से
समाज की जंजीरो से और फ़िर
विचर सकूं
तेरे प्रेम के साथ
उसके मीठे एहसास के साथ
पूरे ब्रह्माडं में।
कौन कहता है
Thursday, 11 February 2010 | comments (2)
कौन कहता है
जो दिखता है वो है नहीं
क्या यह सच है ?
क्या अन्तर है उसके कहने में
और
मेरे समझने में।
सच में
मैं परिपूर्ण हूं?
भावनाओं की क्रूरता से
किसी की करुणा से
किसी की शिक्षा से
किसी की सलाह से
या स्वयं के पागलपन से
या फ़िर मै अछुता हूं
उसकी अनुभूति से
स्पर्श से
या स्वयं से ।
जो दिखता है वो है नहीं
क्या यह सच है ?
क्या अन्तर है उसके कहने में
और
मेरे समझने में।
सच में
मैं परिपूर्ण हूं?
भावनाओं की क्रूरता से
किसी की करुणा से
किसी की शिक्षा से
किसी की सलाह से
या स्वयं के पागलपन से
या फ़िर मै अछुता हूं
उसकी अनुभूति से
स्पर्श से
या स्वयं से ।