हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए! सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही मेरी कोशिश है की ये सूरत बदलनी चाहिए !( विरोध नही अब विद्रोह होगा , शोक नही संघार होगा!)...
Sunday, 23 November 2008 | comments (1)
जब अंधेरें मेंउन राहों से गुजरता हूँ मैंबिना देखे ही जन जाता हूँउन ढोकरो और गड्डों के बारे मेंजिनमे उलझ कर गिरा था मैंचोटें भी खाई थी मैंनेउस कुत्ते को भी पहचानता हूँ मैंजिसने दौड़ाया था काटने कोवह साड़ भी याद हैजिसने अपनी सिंघ पर उठा कर फेकां मुझेलेकिन फिर भीजाता हूँउसी रास्ते हर रोजकिशायद तुम ...! प्रश...
Thursday, 20 November 2008 | comments (2)
इस विश्वाश मेंकि मेरा मौन ही मुखरित होगातुम्हारे सामनेमै चुप रहाअंत तकऔर तुमठुढ़ते रहे मुझेशब्दों में...